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लेखनी कहानी -10-Feb-2024 कविता

*तेरा रूप  निखरता जाए*

मैं देखूं जब भी तुझको तेरा रूप निखरता जाए ।
मन मोहक हो गई हो  तुम्हें देख मेरा दिल ललचाए ।

पहली बार मिले थे तुम रुसवाई का था वो आलम ।
सबकी बार मिले हो तुम अब मौसम बदलता जाए ।

लब तेरे मय का प्याला रुख़सार गुलाबी होते हैं ।
चंदा सा मुख गौर जिस्म लाल चुनर मनहि मन भा जाए ।

ख्वाबों में तुम रोज आती हो ख्यालों मे भी रहती हो ।
दूर क्यों मुझसे जाती हो करीब दिल के फिर आ जाये 

इंतज़ार करते हैं   तुम्हारा गुलिस्तां   में   रहती  हो ।
चाँद सितारों की महफ़िल जुगनू सा दीप फिर जल जाए ।

गुल खिलते बगियां महकती जब चलती तन्हा राहों में ।
रूप तेरा मस्ताना जो दिल दीवाना *कौशल कर जाए ।

    *के,के,कौशल*,
इन्दौर, मध्यप्रदेश

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4 Comments

Shnaya

18-Feb-2024 09:10 AM

Nice one

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Mohammed urooj khan

13-Feb-2024 11:43 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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नंदिता राय

12-Feb-2024 06:21 PM

Nice

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